शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

नफरत की राजनीति पर अंकुष जरूरी-तीस्ता सीतलवाड़ (पी.यू.सी.एल. का राष्ट्रीय अधिवेषन प्रारंभ, कुल ‘अद्रश्य भारत’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया।)


देश में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करने के लिए नफरत की राजनीति करने वालों पर प्रभावी अंकुष लगाया जाना जरूरी है। यह विचार सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता श्रीमती तीस्ता सीतलवाड़ ने पीपुल्स यूनियन  फॉर सिविल लिबर्टीज के 1-2  दिसम्बर 2012 राष्ट्रीय अधिवेषन के उद्घाटन के अवसर पर रखे।


कुमारानन्द भवन में प्रारंभ हुए  दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेषन का उद्घाटन करते हुए श्रीमती सीतलवाड ने कहा कि यह देष का दुर्भाग्य है कि नफरत का वातावरण कम करने का प्रयास करने के बावजूद भी साम्प्रदायिक घटनाएं अलग-अलग स्ािानांे पर होती रहती हैं। उन्होंने हाल ही में फैजाबाद, हैदराबाद और कोकराझार में हुई साम्प्रदायिक घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि इन सबके मूल मं नफरत की राजनीति करने वालों का हाथ है। उन्होंने गुजरात के नरोडा पाटिया केस में न्यायालय के फेसले का स्वागत किया किन्तु कहा कि देष में अधिकांष न्यायालयों की प्रक्रिया सहानुभूतिपूर्ण व संवेदनषील नहीं है। महिलाओं, दलितों व गरीबों व अल्पसंख्यकों के प्रति न्यायालय में होने वाले व्यवहार की समीक्षा की जानी चाहिए तथा गलत फेसलों क विरोध का हक भी मिलवा चाहिए। उन्होनें न्यायालयों में सीसीटीवी लगवाकर रिकार्ड किये जाने की वकालत भी की। उद्घाटन के अवसर पर प्रतिष्ठित न्यायविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री राजेन्द्र सच्चर ने कहा कि लोकतंत्र की मजबूति के लिए मानवाधिकार आंदोलन का सषक्तिकरण आवष्यक है। इस अवसर पर मानवाधिकार आंदोलन में सक्रिय योगदान के लिए जस्टिस राजेन्द्र सच्चर  व तीस्ता सीतलवाड को सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह में सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती अरूणा रॉय ने राजेन्द्र सच्चर व तीस्ता सीतलवाड को योगदान को रेखांकित करते हुए उनसे प्रेरणा लेने का आह्वान किया।

राष्ट्रीय अधिवेषन की प्रांसगिकता को प्रस्तुत करते हुए संगठन के राष्ट्रीय महासचिव वी.सुरेष ने कहा कि देष के अधिकांष राजनैतिक दलों के विफल हो जाने के कारण मानवाधिकार एवं लोंकतंत्र के प्रति चुनौतियां अत्यधिक बढ़ गई हैं। उन्होंने देष में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी मानवाधिकार के प्रति चुनौति बताते हुऐ कहा कि देष की नई आर्थिक नीतियां मानवाधिकार विरोधी है तथा इन के प्रति निगाह रखने की जरूरत है। वी. सुरेष ने मानवाधिकार विरोधी कानूनों राजद्रोह का कानून, विषेष जन सुरक्षा कानून, आर्म्ड फोर्सेस स्पेषल पावर एक्ट, यू.ए.पी.ए. आदि को दमनात्मक बताते हुए इन्हे समाप्त किये जाने की मांग की। देष के युवाज्यों को मानवाधिकार आंदोलन से जोड़ने का आह्वान करते हुए उन्होंने युवाओं के सपने साकार करना आवष्यक बतलाया। 

पी.यू.सी.एल. के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. प्रभाकर सिन्हा ने जन विरोधी कानूनों का उल्लेख करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने तो गुलाम भारत पर रोलेट एक्ट लगाया था किन्तु आजाद भारत के कुछ कानून उससे भी ज्यादा क्रट व अमानवीय है। जनतंत्र में संसाधनों का उपयोग जनता के लिए होना चाहिए किन्तु दुर्भाग्य है कि संसाधन मुट्ठी भर लोगों के हाथ में सीमित है। प्रारंभ में राज्य महासचिव सुश्री कविता श्रीवास्तव में अधिवेषन की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा राज्य अध्यक्ष प्रेमकृष्ण शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

सम्मेलन के पहले दिन तीन सत्र आयोजित किये गये। प्रथम सत्र ‘अलोकतांत्रिक कानून एवं राज्य की निरंकुषता’ पर केन्द्रित था जिसकी अध्यक्षता डॉ. बिनायक सैन ने की। इस सत्र में छत्तीसगढ़ के राजेन्द्र सयाल, मणिपुर के बबलू लाईटोंग, मध्यप्रदेष की माधुरी व दिल्ली की करूणा नन्दी ने विचार प्रस्तुत किये। साम्प्रदायिकता एवं आतंकवाद के नाम पर राजनीति विषय पर आयोजित दूसरे सत्र में असम के सफदर राधा, कर्नाटक के पी.बी. दसा, दिल्ली के महताब, गुजरात के गौतम ठक्कर व राजस्थान के एम. हसन ने अपने-अपने राज्यों में साम्प्रदायिकता की समस्या को प्रस्तुत किया । देर रात आयोजित तीसरे सत्र का विषय विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को हथियाने की राजनीति  पर चर्चा हुई । इस सत्र में छत्तीसगढ़ की सुधा भारद्वाज, राजस्थान के कैलाष मीणा, तमिलनाडु की फातिमा बानू आदि ने विचार व्यक्त किये।

पी.यू.सी.एल. की राज्य महासचिव सुश्री कविता श्रीवास्तव ने बताया कि सम्मेलन में 14 राज्यों के 350 प्रतिनिधि भाग ले रहे है। अधिवेषन के दूसरे दिन 2 दिसम्बर, रविवार को संगठनात्मक मुद्दों पर चर्चा की गई  तथा सुश्री भाषा सिंह के मैला ढोने वाले लोगों पर पुस्तक ‘अदृष्य भारत’ का लोकार्पण किया गया।      




भंवर   

प्रथम युवा लोकतंत्र एवं मानव अधिकार सम्मेलन जयपुर में संपन हुआ


पी.यू.सी.एल. की  सीमा आजाद, डॉ. बिनायक सैन, प्रभाकर सिन्हा ने किया उद्घाटन। 

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, राजस्थान पहला युवा, लोकतंत्र एवं मानव अधिकार सम्मेलन का आयोजन आज कानोडिया कॉलेज में किया। इस सम्मेलन में इस सम्मेलन में 250 से अधिक नौजवान एवं छात्र/छात्रायें पहुंचे।सम्मेलन के मुख्य उद्देश्य रखते हुये पी.यू.सी.एल. के कार्यकर्ताओ ने  कहा कि नौजवानों को मानवाधिकारों पर हो रहे हमलो और उनके लिए तैयार करना बहुत जरूरी हो गया है। उन्होंने पी.यू.सी.एल. संगठन के बारे में बताते हुये कहा कि राजस्थान पी.यू.सी.एल. तो नौजवानों का ही संगठन है इसलिए उसे और ताकतवर करना भी जरूरी है क्यों कि युवा ही आने वाले समय में कमजोर वर्गो के लिए न्याय की अगुवाई करेंगे। 

सीमा आजाद
इस सम्मेलन मे जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. बिनायक सेन, ने कहा कि अगर कुपोषण और भूख के प्रश्नो पर नौजवान चेतेगे नही तो इस देश में हम एक बहुत बड़ी मानवता की त्रास्ती देखेगे।  राष्ट्रीय पी.यू.सी.एल. अध्यक्ष प्रभाकर सिन्हा, ने मानवाधिकारो की सार्वभौमिकता का परिचय देते हुये कहा कि आज की स्थिति में जब भारत का संविधान आये दिन उल्लंघन किया जा रहा है उस संदर्भ में मानवाधिकारों का हनन होना ही है। इसलिए मानवाधिकार समुदाय को आंदोलन के रूप में खडा होना पडेगा तभी अलोकतांत्रिक तरिके से काम कर रही है सरकारों को जवाब देह बना सकेंगे । सत्र के मुख्यवक्ता लेखिका सीमा आजाद जिसको उत्तर प्रदेश की सरकार ने जेल के अंदर बंद कर दिया था एवं हाल ही में वे बेल लेकर निकली है ने कहा कि बोलने की आजादी के साथ कतई भी समझोता नहीं किया जा सकता। चाहे जेल भी जाना हो। उन्होंने नौजवानों को आव्हान किया कि वे समाज में कुछ कर दिखाये जिससे समाज में अन्याय खत्म हो। 

पी.यू.सी.एल. के महासचिव वी.सुरेश ने कहा कि अगर तुम बदलना चाहते हो तो वो बदलाव तुम स्वमं बनो। मणीपुर से आये बबलू लॉयटोंग बाम ने कहा कि आज हम चुप है जब आर्मी मणीपुरी लोगों के मानवाधिकार उल्लंघन करती है लेकिन कल ये सब जब आफसपा जैसा कानून पूरे भारत में लागू होगा तब बहुत देर हो चुकी होगी। इसलिए ईरोम शर्मीला की आवाज पूरे देश को उठानी चाहिये।  

इसी तरह अनेक सत्र नौजवानों ही संभाले एवं विकलांगता, महिला, साम्प्रदायिकता, जातिवाद एवं दलित अधिकार इत्यादि विषयों पर बात हुई। नौजवानों ने अनेक बीच में प्रश्नोउत्तरी रखी गई एवं नाट्य एवं फिल्म भी आयोजित कि गई। 

भंवर 


शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

भूख और कुपोषण मुक्त राजस्थान के लिए खाद्य अधिकार यात्रा का जयपुर पड़ाव


भूख और कुपोषण मुक्त राजस्थान के लिए खाद्य अधिकार यात्रा का जयपुर पड़ाव में 
स्टेच्यू सर्किल पर जन सभा आयोजित की गई एवं राजमहल पैलेस तक रैली निकाली गई।

मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन मुख्य सचिव से भेंट कर दिया गया। 
राज्यपाल एवं प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन को जिला प्रशासन ने प्राप्त किया।


आज राज्य के 38 से भी ज्यादा संगठनों ने मिलकर राज्य सरकार को ललकारा की ''ए.पी.एल. बी.पी.एल. खत्म करो, सबको सस्ता राशन, अनाज, दाल, तेल दो, वरना गद्दी छोड दो''।  यह नारे राज्य में चल रही पिछले हफ्तेभर से खाद्य सुरक्षा यात्रा के आगमन पर सभा में लगाये गये। 


”सबके लिए सस्ता अनाज, गोदामों के ताले खोलो एवं प्रभावी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनें“ को लेकर शुरू हुई राज्य स्तरिय यात्रा अलग-अलग इलाको से गुजर कर जयपुर पहुंची है। राजस्थान में यह यात्रा प्रदेश में बनी हुई चुप्पी को तोडने एवं जनता की न्यायपूर्ण मांगों के सर्मथन में निकाली जा रही है। खाद्य सुरक्षा यात्रा अभी तक दक्षिण राजस्थान के बांसवाडा, डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमंद व आदिवासी बहुल्य सिरोही व बाली क्षेत्र से निकल कर जयपुर आई है। दूसरी तरफ दक्षिण राजस्थान से पाकिस्तान की सीमा से निकलकर बाडमेर, जोधपुर, ब्यावर, अजमेर होकर जयपुर पहुंची एवं उत्तरी राजस्थान हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू, झूंझनू व सीकर के नीम का थाने के इलाके से होती हुई जयपुर पहुंची और अलवर से भी एक यात्रा जयपुर पहुंची। अभी तक इन यात्राओं में जन एवं नुक्कड सभाओं  के जरिये 10 हजार से ज्यादा लोगो से सम्पर्क हुआ है एवं हजारों लोगो के हस्ताक्षर इन मांगों  पर लिये गये है। 

कविता श्रीवास्तव 
पी यू सी एल की महासचिव कविता श्रीवास्तव  ने कहा कि दुनिया में हर पॉच मिनट में एक बच्चे की मौत होती हैं लेकिन दर्दनाक एवं शर्मनाक तो हमारे देश का आंकड़ा हैं जहॉ हर मिनट में तीन बच्चो की मौत हो जाती हैं, इस पर सब लोगो ने ‘‘मनमोहन सिंह शर्म करो, अशोक गहलोत शर्म करो,’’ के नारे लगाये। हमारे देश की आर्थिक वृद्धि की कहानी यही हैं कि भूख एवं कुपोषण घटा नही हैं। सरकार से पूछा कि क्या आप के लिए यह चिन्ता का विषय नही  हैं? सभी के  लिए तो यह इतना गम्भीर मुद्दा हैं कि सभी  प्रदेश और देश में अपना आन्दोलन और तीव्र करेंगे।

उच्चतम न्यायालय आयुक्त के सलाहकार अशोक खण्डेलवाल ने कहा राजस्थान के कोने-कोने से आवाज इस तरह उठ रही है कि सच्चाई यह है कि इस वक्त देश के एफ.सी.आई. गोदामों में 8 करोड टन से भी ज्यादा अनाज रखा हुआ है जो खरीफ की फसल के बाद दिसम्बर तक बढ़कर 10 करोड टन होने वाला है । वहीं दूसरी ओर बडे पैमाने में बच्चे, बूढे एवं वयस्क भूखे और कुपोषित है। क्यो ? इस अन्याय के होते देश की सरकारें, संसद, मीडीया एवं उच्च व मध्यम वर्ग के लोग मौन क्यो है? हर भूख और कुपोषित जीवन एवं अकाल मौतो के हम सब जिम्मेदार हैं। उन्होने आंकडो के जरिये दर्शाया कि प्रदेश में खाद्यान्न, दाल व तेल की बिल्कुल कमी नहीं है। जरूरत है राजनैतिक इच्छा शक्ति की ।

घरेलू कामगार यूनियन की रंजना ने कहा कि प्रवासी मजदूर चाहे राज्य के हो या बाहर के सभी को राशनकार्ड सबको मिलना चाहिए व सबको सस्ता अनाज, दाल, और खाने पकाने तेल दो। बिहारी, बंगाली के नाम पर सरकार व प्रशासन द्वारा की जा रही भेदभाव की निन्दा की। इसी तरह विश्वकर्मा निर्माण मजदूर यूनियन की तरफ से बुद्धिप्रकाश ने कहा कि अगर गुजरात राज्य मोबाईल राशन कार्ड वहां निर्माण मजदूरों को दे सकता है तो राजस्थान क्यों नही? आदिवासी विकास मंच के कालू जी ने कहा कि नरेगा में 100 दिन काम दो और पूरी मजदूरी का हक मत छिनो। आदिवासी इलाके में नरेगा का काम 200 दिन करो। चोहटन इलाके से आये ने जोर कि सभी एकल महिलायें, विकलांग व बुजुर्गो को बिना शर्त 2000 रूपय पेंशन दोे।  बच्चा पैदा होने के 6 माह तक मां को 2000 रूपये प्रतिमाह मातृत्व लाभ मिले। 

आस्था से आये श्याम जी ने उदयपुर के भूखमरी के इलाको में गोदाम न होने का जीक्र किया कि राजसंमद जिले में एक भी गोदाम नही है व मांग की हर तहसील में खाद्यान्न सुरक्षा हेतु गोदाम हो। न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ हर किसान के पास हो व न्यूनतम समर्थन मूल्य का जोड उसे बढ़ाया जाये। नीम का थाना से वीरचक्र जयराम ने कहा कि जल, जंगल, जमीन का पहला हक खाद्यान को लेकर हो ना कि बांध खनन व फैक्ट्रीयों का। भारत ज्ञान विज्ञान समिति से कोमल श्रीवास्तव ने कहा कि  जयपुर में बाढ पीड़ितों के घर व आजीविका का साधन तुरन्त उपलब्द्य कराया जाये। मुआवजा सहित प्रभावित लोगों को संबल दिया जाए। सभी को बीपीएल मानते हुए सस्ते खाद्यान्न की सुविधा दी जाए एवं जब तक वैकल्पिक घर की व्यवस्था लोगों के आजीविका साधनों को देखते हुए न बने तब तक आमानाशाह के नाले पर बसी बस्तियों को न उजाड़ा जाए, अदालतों को निर्णय जो भी हो। 

उपरोक्त सभी मांगों को प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में प्रभावी रूप से समाहित किया जाये, साथ ही कानून में स्वतंत्र शिकायत निवारण व्यवस्था जिला एवं राज्य स्तर पर कायम की जाये व अगर हक प्राप्त ना हो तो जुर्माना व दण्ड अधिकारियों पर हो। 

निर्माण मजदूर एवं जनरल यूनियन के हरकेश बुगालिया ने कहा कि  देश में बढती मंहगाई से खाद्यान की कीमतें बाजार में निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। हाल ही में डीजल एवं पेट्रोल की कीमतो में बेशुमार बढ़ोतरी से जीवन यापन की आधारभूत चीजों को प्राप्त करना अब आम व्यक्ति के लिए मुश्किल हो गया है। इससे शहर -गांव सभी जगह के गरीब, निम्न व मध्यम वर्ग पर रसोई व चूल्हे का संकट गहरा रहा है। 

एक रैली के रूप में राज्यपाल एवं प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने स्टेच्यू सर्किल से सिविल लाईन फाटक की ओर प्रस्थान किया लेकिन स्थानिय पुलिस का बहुत बडी तादात में महिला पुलिस जरिये राजमहल पैलेस पर ही रैली को रोक दिया गया। जनता पुलिस के बीच में संघर्ष हुआ कि सिविल लाईंस फाटक तक उनको जाने दिया जाये लेकिन पुलिस के न मानने पर लोग सड़क पर ही बैठ गये और गीत-नारे लगाते रहे। कलेक्टर की तरफ से कार्यपालक मजिस्ट्रेट नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने ज्ञापन लिया।


दोपहर में 12.30 बजे मुख्य सचिव ने अशोक खण्डेलवाल के नेतृत्व में गया 15 सदस्यीय दल से भेंट की एवं मुख्यमंत्री के नाम का ज्ञापन लिया साथ ही उन्होंने अभियान द्वारा उठाये गये मुद्दे जिससे राजस्थान को भूख व कुपोषण से मुक्ति दिलाई जा सकती है उस पर गौर किया एवं एक व्यवस्थीत बातचीत के लिए बुलाने के लिए वायदा किया। 

राजस्थान के पुलिस महानिदेशक का हिस्ट्रीशीटर के साथ रहना निन्दनीय


अनेक अखबारो में यह समाचार प्रकाषित हुआ है कि राजस्थान के पुलिस महानिदेशक अपनी निजी यात्रा के नाम पर कोटा, बूंदी में लगातार एक नामी हिस्ट्रशीटर के साथ रहे बहुत ही आश्चर्यजनक व हैरान करने वाला है। इससे आम जनता में पुलिस के प्रति रहा-सहा विश्वास भी समाप्त हो जायेगा। जब राज्य का सबसे बडा पुलिस अधिकारी अपराधियों की संगत में रहता हो तो कानून के पालन करने वाले नागरिक पुलिस से अपनी रक्षा की कोई उम्मीद नही कर सकते हैं। उनका यह कहना समाज के कार्यक्रम में निजी यात्रा पर गये थे कोई इससे उन्हें अपराधियों की संगत करने की छुट  नहीं मिलती शायद उन्होने  भी यह कहावत सुनी होगी कि ‘‘व्यक्ति का चरित्र उसकी संगत से ही जाना जाता है’’। लोगो में उनके इस कृत्य से क्या संदेश जायेगा यह स्पष्ट है। 

सरकार को भी इस घटना को गंभीरता से लेना चाहिये और तत्काल उचित कार्यवाही करनी चाहिये ताकि लोगों में उसके प्रति विश्वास की बहाली हो सके। यह भी देखा गया कि उनके आगमन के सम्बन्ध में कई स्थानों पर हॉर्डिग्स भी लगाये गये थे ऐसा लगता था कि शायद वे भी राजनीति में अपने प्रवेश  की जमीन तैयार कर रहे है। बेहतर है कि वे स्वंय अपने पद से हट जाये। 


पप्पू 

Rajasthan Khady Yatra Jaipur Programme


PUCL State Level Meeting 22 23rd September, 2012


Floods in Jaipur August, 2012


Free cancer screening camp in Khejri Health Center, Jagatpura, Jaipur




मंगलवार, 1 मई 2012

बाल श्रम मुक्त जयपुर अभियान की शुरूआत


राजस्थान बाल अधिकार सरक्षंण साझा अभियान, राजस्थान राज्य बाल अधिकार सरक्षंण आयोग व एक्शन एड राजस्थान, की पहल से एवं जिला प्रषासन, जयपुर पुलिस व श्रम विभाग के सहयोग से जयपुर में 1 मई 2012 से बाल श्रम मुक्त जयपुर अभियान की शुरूआत की गई।

अभियान की शुरूआत में माननीय मुख्यमंत्री श्री अषोक गहलोत ने प्रातः 10 बजे अपने निवास स्थान पर बाल श्रम मुक्त जयपुर अभियान के पोस्टर का विमोचन किया जहॉ विभिन्न संस्थाओं द्वारा संचालित गृहों के बच्चों तथा विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों जिनमें सेव द् चिल्ड्रन, प्लान इण्डिया, जे.के.एस.एम. एस. आई इण्डिया, एफ.एक्स.बी, टाबर संस्था के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

तदोपरान्त  पिंक सिटी प्रेस क्लब में अभियान उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता श्रीमती दीपक कालरा, अध्यक्ष राजस्थान राज्य बाल अधिकार सरक्षंण आयोग द्वारा की गई। इसमें विषिष्ठ अतिथि के रूप में पुलिस कमीश्नर श्री बी.एल. सोनी, अतिरिक्त जिला कलेक्टर श्री जसवंत सिंह, अतिरिक्त श्रम आयुक्त श्रीमती अंजना दिक्षित व जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री गणपत आर्चाय ने भाग लिया। 

सर्वप्रथम श्रीमती शबनम अजीज ने अभियान का परिचय दिया तथा अभियान की आवष्यकता के बारे में बताया। पुलिस कमीश्नर श्री बी.एल. सोनी, अतिरिक्त जिला कलेक्टर श्री जसवंत सिंह ने आष्वासन दिया कि पुलिस व जिला प्रषासन इस अभियान के साथ पूर्ण सहयोग करेंगें तथा साथ मिल कर इस अभियान के माध्यम से समाज में फैली इस भयानक बुराई को मिल कर मिटानें के लिए प्रयास करेगें। राज्य बाल आयोग की अध्यक्ष श्रीमती दीपक कालरा ने कहा कि इस अभियान को सफल बनाने के लिए सभी को मिल कर प्रयास करना होगा तभी हम समाज में बाल श्रम की समस्या को मिटा सकते है।  

अभियान के उद्घाटन समारोह में 250 से अधिक लोगों ने भाग लिया जिसमें विभिन्न निजी विद्यालयों के बच्चों स्वयं सेवी सस्थाओं संगठनों व सरकारी विभाग के अधिकारियों ने भाग लिया।

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

उच्चतम न्यायालय से डॉ. खलील चिश्ती को मिली जमानत पहला कदम लेकिन पूरा नहीं-अपनों के बीच में जाने का इंतजार जारी रहेगा।


Dr. Khalil Chisty

पी.यू.सी.एल. राजस्थान को इस बात की खुशी है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों ने आज डॉ. खलील चिश्ती को 14 माह 10 दिन के कारावास के बाद जमानत पर रिहा किया। लेकिन डॉ. चिश्ती के लिए यह रिहाई उन्हें जेल के सलाखों के बाहर जरूर करेगी लेकिन वे पाकिस्तान में अपने घर अभी भी नहीं जा सकते है। उच्चतम न्यायालय का निर्णय एक महत्वपूर्ण पहला कदम के रूप में माना जा सकता है लेकिन अभी डॉ. चिश्ती को अदालत के आगामी निर्णयों का इंतजार करना पड़ेगा। 

पी.यू.सी.एल. का मानना है कि न्यायिक प्रक्रिया डॉ. चिश्ती के लिए हमेशा से ही खुली थी। लेकिन जो कर्त्तव्य राजस्थान के राज्यपाल श्री शिवराज पाटिल को निभाना था वह उन्होंने नहीं निभाया। दया याचिका उनके पास 11 माह से पहुंची हुई है। 2 बार मुख्यमंत्री ने उनके पास भेजी है लेकिन उन्होंने उस पर हस्ताक्षर नहीं किया। अभी भी उनकी दया याचिका राज्यपाल की फाइलो के जाल में फंसी हुई है, राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए अभी भी तरस रही है। अगर वह हस्ताक्षर हो गये होते तो डॉ. चिश्ती पहले ही घर पहुंच गये होते। 

19 साल डॉ. चिश्ती जब जमानत पर थे तब वे अजमेर में एक तरीके से घर में कैद थे। समय समय पर थाने में हाजिरी लगाने जाते और अजमेर के बाहर एक घर की चार दिवारी तक सीमित थे। उम्मीद है कि डॉ. चिश्ती की रिहाई घर में लम्बे समय तक कैद होने के समान न हो जाये। 

पी.यू.सी.एल. पूनः मांग करता है कि जैसे डॉ. चिश्ती की दया याचिका पर राजस्थान के राज्यपाल शिवराज पाटिल के हस्ताक्षर का इंतजार है। उसी तरह पाकिस्तान के जेल में 22 वर्ष से आतंकवाद के नाम पर बन्द भारतीय नागरिक सरबजीत की दया याचिका पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के हस्ताक्षर का इंतजार कर रही है। पाकिस्तान को सरबजीत की सजा-ए-मौत को आजीवन कारावास में तबदील कर उन्हें भारत भिजवा देना चाहिये। 

डॉ. चिश्ती व सरबजीत पाकिस्तान-भारत के बीच राजनीति के कारण अपनों से और अपने वतन से दूर सलाखों के पीछे बंद है। 

श्री बी.एल. वेद्य के हाथों द्वारा लेबोरेटरी, आधुनिक उपकरणों एवं नेत्र जाँच कक्ष का उदघाटन समारोह सम्पन्न हुआ।


खेजड़ी सर्वोदय सामान्य स्वास्थ्य एवं आई केयर सेन्टर में आज दिनांक 9 अप्रैल, 2012 को  प्रातः 10.30 बजे लेबोरेटरी,आधुनिक उपकरणों एवं नेत्र जाँच कक्ष का उदघाटन श्री बी.एल. बेेद्य, अध्यक्ष जयपुर वर्ल्ड सिटी सोसायटी, प्रो. डॉ. कमला चन्द्रा के हाथों द्वारा किया गया। उदघाटन समारोह में डॉ. टी.के.एन. उन्नीथान, पूर्व कुलपति राजस्थान यूर्निवसिटी, डॉ. अल्का रॉव, श्री एम.के. खण्डेलवाल, सचिव, जयपुर वर्ल्ड सिटी सोसायटी, भी मौजूद थे। श्रीमति जी.जे. उन्नीथान मानद निदेषक, खेजड़ी स्वास्थ्य केन्द्र के द्वारा सभी का स्वागत किया गया। उदघाटन समारोह में 100 से भी अधिक लोगों ने भाग लिया।

पिछले 17 वर्षो से खेजड़ी सर्वोदय स्वास्थ्य केन्द्र इस क्षेत्र के निवासियों को बहुत ही कम दरों पर अच्छी चिकित्सा, निःषुल्क दवाईयां और बेहतर सेवायें उपलब्ध करवा रहा है। समय-समय पर गांवों में सामान्य स्वास्थ्य व नेत्र केम्प लगता आ रहा है और टोडीरमजानीपुरा गांव के आस पास लगभग 10 से अधिक गावों के सरकारी व गैर सरकारी विद्यालय में छात्र/छात्राओं को निःशुल्क स्वास्थ्य शिक्षा एव निः स्वास्थ्य प्रशिक्षण करता आ रहा है। आस पास के इलाके के गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, कपडा, विद्यालय फिस, दवाईयां आदि निःशुल्क देता आ रहा है। हमारा उद्देष्य अधिक से अधिक रोगियों का उपचार एवं सहायता प्रदान करना है।
Khejri Sarvodaya General Health & Eye Care Center Staff Members



भँवर लाल कुमावत
समन्वयक

गुरुवार, 22 मार्च 2012

श्री श्री ने कहा कि सरकारी विद्यालयों के बच्चे नक्सलवाद में जाते है


पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल (पीयूसीएल) ने आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता रविशंकर के उस वक्तव्य की कड़े शब्दों में निंदा की है जिसमें उन्होंने यह कहा है कि ‘‘....सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे नक्सलवाद और हिंसा की तरफ प्रेरित होते हैं...... इसलिए सरकारी स्कूल और कॉलेज बन्द करके निजी हाथों में थमा देने चाहिए....... आदर्श विद्यालय सब जगह पहुंचने चाहिए’’। पीयूसीएल मांग करता है कि रविशंकर इस बात का सबूत पेश करें कि देशभर के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छह से 14 वर्ष के 16 करोड़ बच्चे किस तरह से नक्सलवाद एवं हिंसा में सम्मिलित हैं। हम इस तरह की सोच का तिरस्कार करते हैं। 


असलियत तो यह है कि रविशंकर जो कॉरपोरेट जगत के बनाये हुए स्वयंभू आध्यात्मिक गुरू हैं, इसलिए वो एक अंतर्राष्ट्रीय व्यावसायिक ब्रांड बन चुके हैं। वें निजी और कॉरपोरेट क्षेत्र के मुनाफे की बात करेंगे, जहां शिक्षा मूल्य न होकर एक मुनाफा आधारित उद्योग है। 

पी.यू.सी.एल. का मानना है कि यह वक्तव्य संविधान विरोधी भी है क्योंकि :- 
  • यह अनुच्छेद 21ए जिसमें शिक्षा का अधिकार सम्मिलित है एवं सरकार को 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा देने के लिए बाध्य करता है, की अवहेलना करता है। 
  • इस वक्तव्य के पीछे उनकी खतरनाक मंशा इसलिए भी जाहिर होती है क्योंकि रविशंकर सावरकर, गोलवकर एवं आरएसएस की विचारधारा पर आधारित शिक्षा जो आदर्श विद्या सोसायटी अपने आदर्श विद्या मन्दिर स्कूलों के जरिए देता है उसे देशभर में स्थापित करना चाहते हैं न की संवैधानिक, धर्मनिरपेक्ष, बराबरी, लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा।

पी.यू.सी.एल. रविशंकर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करते हैं। 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

इश्क कीजै फिर समझिए जिंदगी क्या चीज है...

प्यार जैसा खूबसूरत अहसास हर किसी की जिंदगी को कुछ स्पेशल बना देता है अगर इसमें आपके हमसफर का साथ मिल जाए तो बस कहने ही क्या... करें अपनी मोहब्बत का इजहार युवाआं को पूरे सालभर प्यार के त्यौहार का दिन वेलेंटाइन डे का इंतजार रहता है. अपने प्रेमी से प्यार का इजहार करने के लिए वे पहले से तैयारी करके रखते हैं |

वैलेंटाइंस वीक का दूसरा दिन प्रपोज डे होता है जब आप अपनी मोहब्बत का इजहार करते हैं|







प्यार जैसा खूबसूरत अहसास हर किसी की जिंदगी को कुछ स्पेशल बना देता है. जब दो चाहने वाले एक-दूसरे से अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं| हालांकि इस दौड़ भाग की जिंदगी में हमें एक दूसरे के साथ बिताने के लिए वक्त ही नहीं मिल पाता,ऐसे समय में हमें चाहिए कि हम छोटी छोटी चीजों में खुशियां ढूंढे और अपने हमसफर को खुश रखने की कोशिश करें|

आपके लिए भी यह दिन उतना ही खास है जितना की न्यू लवर्स के लिए, इस दिन को सेलिब्रेट करने के लिए आप पूरा एक दिन अपने हमदम के साथ बिता सकते हैं, उन्हें फिर एक बार प्रपोज करें और अपने प्यार के पहले दिन को फिर से जीएं|

क्या है प्रपोज डे

अगर आप किसी से अपने दिल की बात कहना चाहते हैं या फिर रोज डे पर किसी कारणवश आप उनसे अपनी बात नहीं कह पाए हैं तब यह खास दिन सिर्फ आपके लिए है. इस दिन कुछ अलग अंदाज में आप अपने दिल की बात अपने प्रिय तक पहुंचा सकते हैं |

जैसे समय के साथ प्रेम की परिभाषा बदली है, ठीक उसी तरह बदलते दौर के साथ-साथ प्यार का इजहार करने के तरीके भी बदले हैं. अब गया वो जमाना जब प्रेमी एक-दूसरे को पत्र लिखकर अपने प्यार का इजहार करते थे |

लेकिन अब इस हाईटेक जमाने में आप फेसबुक पर,एसएमएस करके, फोन पर, किसी को चोरी छुपे फूल भिजवा पर भी अपने प्यार का इजहार कर सकते है |

365 दिन हैं वेलेंटाइन डे

दिल्ली के सुनील खन्ना का कहना है कि यदि हम किसी लड़की की पसंदीदा बात और व्यवहार को सही तरीके से समझ सकते हैं, तो हमें प्यार का इजहार करने के लिए वेलेंटाइन डे का इंतजार नहीं होगा |

अगर हम अपने वेलेंटाइन को सही मायने में समझते और प्यार करते है तो हमें इस दिन से कोई फर्क नहीं पड़ता | आज के दिन ही सही अपने दिल की बात कह दे| वहीं दूसरी ओर रीतू झाम का कहना है हालांकि प्यार के लिए किसी दिन की जरूरत नहीं होती पर फिर भी इंतजार रहता है जिसे आप मन ही मन प्यार करते है वो आज के दिन ही सही अपने दिल की बात कह दे |

जयपुर की पिंकी का कहना है कि इस दिन लड़का यदि किसी ल़डकी से प्यार का इजहार करता है तो यह जरूरी नहीं कि हमसे वाकई ही प्रेम करता हो | इसलिए कुछ प्रपोज को रिजेक्ट करने का चांस भी ज्यादा होता है |

पेश है प्यार करने वालों के लिए प्यार का टाइम टेबल :

7 फरवरी - यह दिन रोज डे के रूप में मनाया जाता है. अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आप अलग-अलग रंगों के गुलाबों का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे प्यार के लिए लाल और दोस्ती के लिए पीला गुलाब |

8 फरवरी - प्रपोज डे के दिन प्रेमी-प्रेमिकाएं अपने चाहने वालों से प्यार का इजहार करते हैं. अगर आप किसी से अपने दिल की बात कहना चाहते हैं तब इस दिन कह डालिए अपनी बात, क्योंकि यह दिन आप ही के लिए बना है |

9 फरवरी - इसे चॉकलेट डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन आप अपने प्यार को चॉकलेट देकर अपने संबंधों में मिठास से भर सकते हैं |

10 फरवरी - टेडी डे, जिसमें टेडी टॉयज देने के बहाने भी आप प्यार को और गहरा कर सकते हैं |

11 फरवरी - प्रॉमिस डे, सच्चे प्रेमी प्रॉमिस डे पर एक-दूसरे से प्यार निभाने का वादा करते हैं |

12 फरवरी - किस डे, इस दिन सच्चे प्रेमी-प्रेमिका किस के जरिए अपना प्यार जताते हैं |

13 फरवरी - हग डे, इस दिन अपने साथी को दें एक जादू की झप्पी और उन्हें एहसास दिलाएं कि वे आपके लिए कितने खास हैं|

14 फरवरी - वेलेंटाइन डे, प्यार करने वालों के लिए सबसे बड़ा दिन जिसे संत वेलेंटाइन की याद में मनाया जाता है। इस दिन आप अपने प्यार के साथ सारा दिन बिता सकते हैं, उन्हें ब्यूटीफुल गिफ्ट्स दे सकते हैं।

15 फरवरी - इस दिन जरा संभल कर रहें, क्योंकि स्लैप डे है |

16 फरवरी - इस दिन को किक डे के रूप में मनाया जाता है, अपने प्रिय को प्यार से किक करें और लीजिए खट्टी-मीठी नोक-झोंक का मजा।

17 फरवरी - परफ्यूम डे, इस दिन फूलों और इत्र भेंट कर प्यार की खुशबू का मजा लें |

18 फरवरी - फ्लर्टिंग डे, प्यार के साथ फ्लर्ट करने का मजा ले सकते हैं. |

19 फरवरी - कन्फेशन डे इस दिन अपनी सारी गलतियों को अपने प्रिय के सामने कन्फेस करें और उन गलतियों को न दोहराने का वादा करें। इससे आपके संबंध और मजबूत हो जाएंगे |

20 फरवरी - मिसिंग डे, इस दिन को एन्जॉय करने के लिए आप अपने प्रिय से दूर रहें और एक-दूसरे के साथ बिताए पलों को याद करें और अपने प्रियतम को प्यार भरे मिसिंग यू के संदेश भेजें |

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

ये जज इतना क्यों उछलता है भाई!


बड़ी पुराणी कहावत है कि 'मिया बीबी राजी तो क्या करेगा काजी'

सन 2010 मे सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा उसमे यही अन्तनिर्हित था | सीधी सी बात है कि जिस समाज मे बालिक होने के बाद आपको सरकार चुनने का हक़ मिल जाता है वंहा इसी उम्र मे आपको अपने साथी और उसके साथ रहने कि शर्त चुनने का हक़ क्यू नहीं मिलना चाहिये ? सवाल बस इतना सा है | लेकिन जो लोग महिला आरक्षण पर त्योरिया चढ़ा रहा है वे जाहिर तौर पर इस पर भी नाराज होंगे ही | अब जिन्हें पार्क मे बतियाते लड़के-लड़कियों से दिक्कत है वे लिव इन पर कैसे चूप रहेंगे ?



पर ये दिक्कत है क्यू ? पहली बात तो ये कि कम से कम हिन्दू समाज में प्रेम विवाह या ऐसे रिश्ते जाती व्यवस्था पर तीखा प्रहार करते है जो धर्म के ठेकेदार को मंजूर नहीं | दूसरा जिन्हें औरत बस बच्चे पैदा करने कि मशीन लगती है उन्हें उसके निर्णय लेने के किसी भी अधिकार पर एतराज होना ही है | यह निर्णय लेने वाली बात सीधे पितृसतात्मक  व्यवस्था पर आघात करती है |

जो लोग इसके दूसरे पहलुओ पर बात करते हैं उनकी चिंता औरत कि यौन शुचिता को लेकर अतिशय चिंता से उभरती है | पितृसतात्मक समाज जिस यौन शुचिता को लेकर इतना संवेदनशील है उसकी कीमत औरत को हो चुकानी होती है, इसीलिए बलात्कार जैसे अपराध मे भी विक्टिम को हो सामाजिक बहिष्कार का शिकार बनना पड़ता है | इस सवाल पर भी बात सिर्फ इतनी है कि एक आधुनिक समाज मे स्त्री को अपना यौनिकता और सेक्सुअल प्रिफरेंस पर फेसले का हक़ क्यूं नहीं होना चाहिये ? जिस क्रिया के बाद पुरुष अपवित्र नहीं होता स्त्री को अपवित्र करार देने वाले आप कौन होते हैं ?




यह सच है कि बच्चो को पालने कि जिम्मेदारी मे सरकार और समाज कि कोई भागीदारी न होने और समाज के भीतर व्याप्त असुरक्षा के कारण सड़ गल जाने के बावजूद शादी एकमात्र विकल्प के रूप मे सामने आती है | लेकिन कोई अगर इसके बाहर विकल्प ढूंढना चाहे तो किसी के पेट मे दर्द क्यूं हो भाई ?

सोमवार, 23 जनवरी 2012

बाल अधिकारो के बीस वर्ष बाद भी स्थितियांे में कोई सुधार नहीं।


आज से बीस वर्ष पहले 1989 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित बाल-अधिकारो के कन्वेंषन के जरिए बच्चों के लिए एक बेहतर स्वास्थ्य और सुरक्षित दुनिया का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन समय के दस दषक गुजर जाने के बाद आज के बच्चों की यह दुनिया कही बदतर, असुरक्षित और बीमार दिखाई देती है।

भारत देष की हालत और भी खराब दिखाई देती है, मामले चाहे भूख, गरीबी, शोषण, रोग तथा बच्चों के साथ बरते जाने वाले दुर्व्यवहार से जुड़े हो या प्राथमिक स्वास्थ्य और षिक्षण सुविधाओं से सम्बन्ध रखने वाले तथ्यो से हो। कुल मिलाकर भारत की हालत अत्यन्त दयनीय बन पड़ी है। यूनिसंेफ की रिपोर्ट बताती है कि 5 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की मौत के क्रम में भारत बहुत आगे खड़ा मिलता है। भारत बच्चों की मौत का स्थान 49वां स्थान हैं। 

सर्वषिक्षा अभियान के आंकड़ो के मुताबिक देष के तकरीबन 81 लाख 50 हजार 619 बच्चें विद्यालय  शिक्षा  के दायरे से बाहर है। 41 प्रतिषत विद्यालयों में लडकियों के लिए शौचालय तक नही बने हैं, तो 49 प्रतिषत विद्यालयों में बच्चों के लिए खेल के मैदान नहीं है और विद्यालयों मे लगभग बारह लाख  शिक्षको की कमी है। ऐसे में सरकार हर बच्चे को षिक्षा का नारा बेमानी साबित हो रहा है। 

पिछले दिनों में दिल्ली में षिक्षामंत्रियों की बैठक में केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों से 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःषुल्क एवं अनिवार्य षिक्षा का अधिकार कानून लागू करने को कहा। 

शिक्षा अधिकार कानून के अनुसार प्राथमिक विद्यालयोे में कम से कम दो शिक्षक  और 60 से अधिक छात्र होने पर तीन  शिक्षक   तैनात करने के लिए कहा गया है। सभी विद्यालयों में विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान विषय के लिए अनिवार्य रूप से एक-एक  शिक्षक   होना चाहिए, लेकिन हकीकत यह है कि देश  में भारी बेरोजगारी के बाद भी 12 लाख  शिक्षको  की कमी है। 

द स्टेट ऑव द वर्ल्डस् चिल्ड्रेन के नाम से जारी होनी वाली युनिसेफ की रपट का एक सकारात्मक तथ्य यह है कि वर्ष 1990 के बाद से 5 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के बीच की औसत से कम वजन वाले बच्चांे की संख्या दुनियाभर में कम हुई है। यह एक अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। 

भारत में सरकारी आंकड़ो के हवाले से देष की 32.2 प्रतिषत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। देष में 5 वर्ष से कम आयु के 48 प्रतिषत बच्चे सामान्य से कमजोर जीवन जीने को मजबूर हो रहे है। विश्व  स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में से 49 प्रतिषत भारत में पाये गये है। कमरतोड़ मंहगाई के साथ-साथ यहां एक सेकेण्ड के भीतर 5 वर्ष के नीचे का एक बच्चा कुपोषण की चपेट में आ जाता है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा  औरतों में 44.5 प्रतिषत (करीब आधी) औरतें ऐसी हैं जिनकी शादियां 18 साल के पहले हुई हैं। इन 20 से 24 वर्ष की शादीशुदा  औरतों में से 22 प्रतिषत (करीब एक चौथाई) औरतें ऐसी है जो 18 वर्ष के पहले मां बनी है। इन कम उम्र की लड़कीयों से 73 प्रतिषत (सबसे ज्यादा) बच्चें पेदा हुये है। फिलहाल इन बच्चो में 67 प्रतिषत (आधे से बहुत ज्यादा) कुपोषण के षिकार है। 

देश की 40 प्रतिषत बस्तियों में तो विद्यालय ही नही हैं। 48 प्रतिषत बच्चे प्राथमिक विद्यालयों से दूर हैं। 6 से 14 वर्ष की कुल लड़कियों में से 50 प्रतिषत लड़कियां तो विद्यालय से ड्राप-आऊट हो जाती है। लडकियों के लिए सरकार भले ही ‘‘ सशक्तिकरण  के लिएशिक्षा’’ जैसे नारे देती रहे मगर नारे देना जितने आसान हैं लेकिन लक्ष्य तक पहुंचना उतना ही मुश्किल  हो रहा है। क्योकि आखिरी जनगणना के मुताबिक भी देश की 49.46 करोड़ महिलाओं में से सिर्फ 53.67 प्रतिषत साक्षर हैं, मतलब 22.91 करोड़ महिलाएं निरक्षर है। एशिया महाद्विप में  भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। क्राई के अनुसार भारत में 5 से 9 वर्ष की 53 फिसदी लड़कियां पढ़ना नही जानती। इनमे से ज्यादातर रोटी के चक्कर में घर य बाहर काम करती हैं, इसी तरह जहां पूरी दुनिया में 24.6 करोड़ बाल मजदूर हैं, वहीं केन्द्र सरकार के अनुसार अकेले अपने देष में 1.7 करोड़ बाल मजदूर हैं और जिनमें से भी 12 लाख खतरनाक उद्योगो में काम कर रहे है। 

उपरोक्त तथ्यों के अनुसार आज भी हम कह सकते है कि बाल अधिकारों में इतना कुछ संघर्ष करते हुये भी बाल अधिकारों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।


भँवर लाल कुमावत (पप्पू)