कला, शिक्षा व नागरिकता
द्वितीय सुश्री हेमलता प्रभू मेमोरियल लेक्चर दिनांक 23 अप्रेल, 2013 को सांय 5.45 बजे से रंगायन हॉल, जवाहर कला केन्द्र, जे.एल.एन. मार्ग, जयपुर में किया | इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता मल्लीका साराभाई, विश्वविख्यात नृत्यागना रहेंगी जो ‘‘कला, शिक्षा व नागरिकता’’ शिर्षक पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। व्याख्यान माला की पहली कड़ी में एन.एस.डी. की प्रोफेसर त्रिपुरारी शर्मा ने व्याख्यान दिया।
व्याख्यान माला की दूसरी कड़ी में अपनी बात रखते हुए मल्लीका साराभाई ने कहा कि वे हमेशा अपनी कला एवं काम को शिक्षा के क्षेत्र व महिला सशक्तिकरण के दायरे में देखती है। 30 वर्ष से ज्यादा दर्पणा एकेडमी के मंच से उन्होंने कला के हर स्तर को बढाने की कोशिश की है चाहे वह शास्त्रीय हो या वर्तमान हो। 1989 में उन्होंने अपना ‘‘शक्ति-दा पावर ऑफ वूमन’’ नाट्क से सामाजिक बदलाव की ओर काम करना शुरू किया व मध्य 90 के दशक में उन्होंने अपनी ही परिभाषा नृत्य को दी जिसमें न्याय, समानता, कला, खुबसूरती, स्थेटीक्स इत्यादि में एक समग्रता लाते हुए विश्वभर में अपने काम को फैलाया। इसी क्रम में जब गुजरात में 2002 में कत्लेआम हुआ उनके लिए सहज था कि वे न्याय के लिए खड़े हो और अपनी कला से नफरत की राजनिती से ऊपर लोगों को उठाये। इसी तरह 2009 का चुनावी संघर्ष एक सत्याग्रह था। बस एक ही विश्वास है कि कला ही सिर्फ एक माध्यम है जिससे बदलाव आयेगा।
व्याख्यान में विशेष टिप्पणी प्रो. लोकनाथन, भौतिक विज्ञान (सेवानिवृत्त, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर) की होगी, जो सुश्री हेमलता प्रभू को लम्बे समय से जानते थे। ने कहा कि वे 1969 से सुश्री हेमलता प्रभू एवं उनकी साथी सुश्री कृष्णा तरवे कोे जानते थे। उन्होंने कहा कि सुश्री प्रभू जयपुर 1944 अपने पिता के साथ छुट्टीयां मनाने आई थी और उन्होंने जयपुर शहर को अपना लिया और जयपुर को एक अनूठी नागरिक प्राप्त हुई जिसने अपना पूरा जीवन कला, शिक्षा और जिम्मेदार नागरिक स्थापित करने में समर्पित किया।
व्याख्यान में विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा रॉय, शिक्षाविद शारदा जैन, अनेक छात्र/छात्राऐं एवं अनेक महिला आंदोलन की कार्यकर्ताये शामिल हुई।
प्रदर्शनी का उदघाटन
व्याख्यान से पूर्व 4.30 बजे सुक्रीती कला दिर्घा जवाहर कला केन्द्र में बोध शिक्षा समिति, दिगंतर एवं विहान द्वारा चलाये जा रहे विद्यालयों के बच्चों द्वारा बनाई गई चित्रकला की प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। कुल 125 कलाकृतियां 92 बच्चों द्वारा बनाई गई थी, जिसमें लकड़ी के खिलौने, टेराकोटा का कार्य, पेपर मेरसी, ग्लास पेन्टींग, कॉर्लाज, क्राफ्ट कार्य है जिन्हें प्रदर्शीत किया।
यह प्रदर्शनी क्यों? सुश्री हेमलता प्रभू आरंभ से ही वंचित वर्ग के सभी बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध थीं। उन्होंने 1989 से वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए जयपुर के अन्य साथियों के साथ बोध शिक्षा समिति की स्थापना की। सुश्री प्रभू का ताल्लुक इन बच्चों के संग वैसा ही था जैसे उन्होंने महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूल, महारानी कॉलेज व कॉनोडिया कॉलेज की छात्राओं के साथ बनाया था। उनकी एक ही चाह थी कि इन बच्चों के लिए भी सबसे उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त हो। आज बोध शिक्षा समिति अलवर के थानागाजी में दूरदराज की ग्रामीण लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय चला रही है व कूकस में जयपुर शहर के गरीब बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय चला रही है व जयपुर की ढेरांे कच्ची बस्तियों में सरकारी विद्यालय में शिक्षकों व छात्रों के साथ लगातार शैक्षणिक हस्तक्षेप का कार्य कर रही है।
दिगंतर शिक्षा एवं खेलकूद समिति जो पिछले 23 वर्षो से जगतपुरा के भावगढ़ व रतवाली में पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए विद्यालय चला रही है। जयपुर शहर के हाशिए से सटे इन गांवों में बालिका शिक्षा की स्थिति में सुधार की दिशा में दिगंतर ने महत्वपूर्ण कार्य किया है और अब इन इलाकों में जहां पहले बालिकाएं स्कूल तक नहीं जाती थीं वे अब महाविद्यालयों तक शिक्षा प्राप्त करने की पहल कर रही हैं। दिगंतर के दोनों स्कूलों के माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा में बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए व बच्चों का संपूर्ण विकास कैसे हो, इसकी बुनियादी समझ निकलती है।
वहीं विहान संस्थान जयपुर की त्रिवेणी नगर की कच्ची बस्ती में पिछले 10 वर्षो से शिक्षा से वंचित 200 बच्चों के लिए एक प्रायोगिक विद्यालय चला रहा है। विहान का लक्ष्य है कि समाज के वंचित वर्ग के बच्चों को विकास के समान अवसर प्राप्त हों और वे शिक्षा के जरिए समाज में सम्मानजनक स्थान हासिल कर पाएं।
इन सभी संस्थाओं में कला को संपूर्ण विकास के लिए असरदार अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में देखती हैं। आज के इस अवसर पर सुश्री हेमलता प्रभू की स्मृति में इन तीनों विद्यालयों के बच्चों द्वारा बनाए गए चित्रों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। बच्चों द्वारा बनाए गए चित्र उनकी इस समझ की सशक्त प्रस्तुति है। आज की यह प्रदर्शनी सुश्री हेमलता प्रभू को समर्पित है।
सुश्री हेमलता प्रभू के बारे में:- सुश्री हेमलता प्रभू चैन्नई में पली-बढी लेकिन उन्होंने अपना पूरा जीवन जयपुर व राजस्थान को दिया। कला, शिक्षा व नागरिकता के क्षेत्र में उनका अभूतपूर्व योगदान रहा । जयपुर में महिला शिक्षा की स्थापना में अग्रणी रही व 20 वर्ष (1945-66), महारानी कॉलेज में अंग्रेजी की प्राध्यापिका रही । 1966 मंे कॉनोडिया कॉलेज की स्थापना की व 1982 तक कार्य किया। वह राजस्थान में पहली नाट्य निर्देशीका रही व नाट्य निर्देशन के क्षेत्र में अदभूत काम किया। राजस्थान में महिला आंदोलन की स्थापना व सती प्रथा के विरूद्ध आंदोलन का नेतृत्व किया। मानवाधिकार संस्थान पी.यू.सी.एल. की राजस्थान ईकाई की सहसंस्थापिका रही व 2006 में देहान्त हुआ।
कला, शिक्षा व नागरिकता का मंच क्यों? सुश्री हेमलता प्रभु, के साथ जुडे यह तीन शब्द कला, शिक्षा व नागरिकता, जो आमतौर से एक लगते हैं, इन तीनों को अपने में समेटे हुए थीं। वे एक शिक्षक थीं जो कला एवं मंच से जुड़ी रहीं और उनका मानव अधिकार की लड़ाई से भी गहरा रिश्ता था। एक व्यक्तित्व जो इन तीन चीजों को समेटे हुए था वह आज हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत तो हैं ही। इस तरह के व्यक्तित्व और इन तीन शब्दों को एक साथ सोचने के लिए यह आज का दिन ज्यादा खास है। खास इसलिए कि आज हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहां हमने हर चीज को बहुत बांट दिया है। हमने केवल धर्म को ही नहीं बांटा, हमने हर किसी को खेमे में बांट दिया है। उसको समग्रता में पूनः लाने के लिए यह मंच कार्यरत है।
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