उस दिन भी चूल्हा चल रहा था
और हम सब उसके आसपास बैठे थे
माँ एक एक करके रोटी बना रही थी
कभी छोटे की बारी आती कभी मेरी
और कभी बाबा की
मुन्नी तो बस माँ के साथ बैठकर हमे देख रही थी
अचानक से एक शोर आया
शहर में फिर से दंगा भड़का था
इस बार तो ये हमारे घर के करीब ही लगता था
शोर सुनकर हम सब भागे
माँ से मुन्नी को पकड़ा और बाबा ने हम दोनों को संभाला
फिर हम सब ऐसे भागे थे
कि एक एक करके सब खो गये थे
जब तक होश आया
तो मैं हिंदुस्तान में था
माँ बाबा छोटा मुन्नी सब कही रह गये थे
और वो भूख अब तक लगी हुई थी
रोटी की अगली बारी मेरी ही तो थी
न जाने कितने बरस बीत गये
माँ बाबा छोटा मुन्नी सब
अब एक ख्वाब सा लगते है
लेकिन अफ़सोस तो ये है
कि उस आग में अब तक भी
न जाने कितने चूल्हे जलते है
उस दिन हमारा घर जला था
अब किसी और का जलता है
कितने बच्चे अब भी अपनों से बिछड़ते है
बहुत हो गया अब और न आग लगाओ
मिलकर रहने दो सबको
हर एक को अपनी रोटी खाने दो
मेरी तरह वरना कितने
उस रोटी क़ी भूख को लेकर हर रोज़ मरते रहेंगे
माँ अब मेरी बारी है रोटी क़ी ....
भंवर लाल कुमावत (पप्पू)
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