देश में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करने के लिए नफरत की राजनीति करने वालों पर प्रभावी अंकुष लगाया जाना जरूरी है। यह विचार सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता श्रीमती तीस्ता सीतलवाड़ ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के 1-2 दिसम्बर 2012 राष्ट्रीय अधिवेषन के उद्घाटन के अवसर पर रखे।
कुमारानन्द भवन में प्रारंभ हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेषन का उद्घाटन करते हुए श्रीमती सीतलवाड ने कहा कि यह देष का दुर्भाग्य है कि नफरत का वातावरण कम करने का प्रयास करने के बावजूद भी साम्प्रदायिक घटनाएं अलग-अलग स्ािानांे पर होती रहती हैं। उन्होंने हाल ही में फैजाबाद, हैदराबाद और कोकराझार में हुई साम्प्रदायिक घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि इन सबके मूल मं नफरत की राजनीति करने वालों का हाथ है। उन्होंने गुजरात के नरोडा पाटिया केस में न्यायालय के फेसले का स्वागत किया किन्तु कहा कि देष में अधिकांष न्यायालयों की प्रक्रिया सहानुभूतिपूर्ण व संवेदनषील नहीं है। महिलाओं, दलितों व गरीबों व अल्पसंख्यकों के प्रति न्यायालय में होने वाले व्यवहार की समीक्षा की जानी चाहिए तथा गलत फेसलों क विरोध का हक भी मिलवा चाहिए। उन्होनें न्यायालयों में सीसीटीवी लगवाकर रिकार्ड किये जाने की वकालत भी की। उद्घाटन के अवसर पर प्रतिष्ठित न्यायविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री राजेन्द्र सच्चर ने कहा कि लोकतंत्र की मजबूति के लिए मानवाधिकार आंदोलन का सषक्तिकरण आवष्यक है। इस अवसर पर मानवाधिकार आंदोलन में सक्रिय योगदान के लिए जस्टिस राजेन्द्र सच्चर व तीस्ता सीतलवाड को सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह में सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती अरूणा रॉय ने राजेन्द्र सच्चर व तीस्ता सीतलवाड को योगदान को रेखांकित करते हुए उनसे प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
राष्ट्रीय अधिवेषन की प्रांसगिकता को प्रस्तुत करते हुए संगठन के राष्ट्रीय महासचिव वी.सुरेष ने कहा कि देष के अधिकांष राजनैतिक दलों के विफल हो जाने के कारण मानवाधिकार एवं लोंकतंत्र के प्रति चुनौतियां अत्यधिक बढ़ गई हैं। उन्होंने देष में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी मानवाधिकार के प्रति चुनौति बताते हुऐ कहा कि देष की नई आर्थिक नीतियां मानवाधिकार विरोधी है तथा इन के प्रति निगाह रखने की जरूरत है। वी. सुरेष ने मानवाधिकार विरोधी कानूनों राजद्रोह का कानून, विषेष जन सुरक्षा कानून, आर्म्ड फोर्सेस स्पेषल पावर एक्ट, यू.ए.पी.ए. आदि को दमनात्मक बताते हुए इन्हे समाप्त किये जाने की मांग की। देष के युवाज्यों को मानवाधिकार आंदोलन से जोड़ने का आह्वान करते हुए उन्होंने युवाओं के सपने साकार करना आवष्यक बतलाया।
पी.यू.सी.एल. के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. प्रभाकर सिन्हा ने जन विरोधी कानूनों का उल्लेख करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने तो गुलाम भारत पर रोलेट एक्ट लगाया था किन्तु आजाद भारत के कुछ कानून उससे भी ज्यादा क्रट व अमानवीय है। जनतंत्र में संसाधनों का उपयोग जनता के लिए होना चाहिए किन्तु दुर्भाग्य है कि संसाधन मुट्ठी भर लोगों के हाथ में सीमित है। प्रारंभ में राज्य महासचिव सुश्री कविता श्रीवास्तव में अधिवेषन की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा राज्य अध्यक्ष प्रेमकृष्ण शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
सम्मेलन के पहले दिन तीन सत्र आयोजित किये गये। प्रथम सत्र ‘अलोकतांत्रिक कानून एवं राज्य की निरंकुषता’ पर केन्द्रित था जिसकी अध्यक्षता डॉ. बिनायक सैन ने की। इस सत्र में छत्तीसगढ़ के राजेन्द्र सयाल, मणिपुर के बबलू लाईटोंग, मध्यप्रदेष की माधुरी व दिल्ली की करूणा नन्दी ने विचार प्रस्तुत किये। साम्प्रदायिकता एवं आतंकवाद के नाम पर राजनीति विषय पर आयोजित दूसरे सत्र में असम के सफदर राधा, कर्नाटक के पी.बी. दसा, दिल्ली के महताब, गुजरात के गौतम ठक्कर व राजस्थान के एम. हसन ने अपने-अपने राज्यों में साम्प्रदायिकता की समस्या को प्रस्तुत किया । देर रात आयोजित तीसरे सत्र का विषय विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को हथियाने की राजनीति पर चर्चा हुई । इस सत्र में छत्तीसगढ़ की सुधा भारद्वाज, राजस्थान के कैलाष मीणा, तमिलनाडु की फातिमा बानू आदि ने विचार व्यक्त किये।
पी.यू.सी.एल. की राज्य महासचिव सुश्री कविता श्रीवास्तव ने बताया कि सम्मेलन में 14 राज्यों के 350 प्रतिनिधि भाग ले रहे है। अधिवेषन के दूसरे दिन 2 दिसम्बर, रविवार को संगठनात्मक मुद्दों पर चर्चा की गई तथा सुश्री भाषा सिंह के मैला ढोने वाले लोगों पर पुस्तक ‘अदृष्य भारत’ का लोकार्पण किया गया।
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