Dr. Khalil Chisty |
पी.यू.सी.एल. राजस्थान को इस बात की खुशी है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों ने आज डॉ. खलील चिश्ती को 14 माह 10 दिन के कारावास के बाद जमानत पर रिहा किया। लेकिन डॉ. चिश्ती के लिए यह रिहाई उन्हें जेल के सलाखों के बाहर जरूर करेगी लेकिन वे पाकिस्तान में अपने घर अभी भी नहीं जा सकते है। उच्चतम न्यायालय का निर्णय एक महत्वपूर्ण पहला कदम के रूप में माना जा सकता है लेकिन अभी डॉ. चिश्ती को अदालत के आगामी निर्णयों का इंतजार करना पड़ेगा।
पी.यू.सी.एल. का मानना है कि न्यायिक प्रक्रिया डॉ. चिश्ती के लिए हमेशा से ही खुली थी। लेकिन जो कर्त्तव्य राजस्थान के राज्यपाल श्री शिवराज पाटिल को निभाना था वह उन्होंने नहीं निभाया। दया याचिका उनके पास 11 माह से पहुंची हुई है। 2 बार मुख्यमंत्री ने उनके पास भेजी है लेकिन उन्होंने उस पर हस्ताक्षर नहीं किया। अभी भी उनकी दया याचिका राज्यपाल की फाइलो के जाल में फंसी हुई है, राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए अभी भी तरस रही है। अगर वह हस्ताक्षर हो गये होते तो डॉ. चिश्ती पहले ही घर पहुंच गये होते।
19 साल डॉ. चिश्ती जब जमानत पर थे तब वे अजमेर में एक तरीके से घर में कैद थे। समय समय पर थाने में हाजिरी लगाने जाते और अजमेर के बाहर एक घर की चार दिवारी तक सीमित थे। उम्मीद है कि डॉ. चिश्ती की रिहाई घर में लम्बे समय तक कैद होने के समान न हो जाये।
पी.यू.सी.एल. पूनः मांग करता है कि जैसे डॉ. चिश्ती की दया याचिका पर राजस्थान के राज्यपाल शिवराज पाटिल के हस्ताक्षर का इंतजार है। उसी तरह पाकिस्तान के जेल में 22 वर्ष से आतंकवाद के नाम पर बन्द भारतीय नागरिक सरबजीत की दया याचिका पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के हस्ताक्षर का इंतजार कर रही है। पाकिस्तान को सरबजीत की सजा-ए-मौत को आजीवन कारावास में तबदील कर उन्हें भारत भिजवा देना चाहिये।
डॉ. चिश्ती व सरबजीत पाकिस्तान-भारत के बीच राजनीति के कारण अपनों से और अपने वतन से दूर सलाखों के पीछे बंद है।